साथी! दुःख से घबराता है? गोपालदास ’नीरज’
साथी! दुःख से घबराता है?
दुःख ही कठिन मुक्ति का बंधन,
दुःख ही प्रबल परीक्षा का क्षण,
दु:ख से हार गया जो मानव, वह क्या मानव कहलाता है?
साथी! दु:ख से घबराता है?
जीवन के लम्बे पथ पर जब
सुख दुःख चलते साथ-साथ तब
सुख पीछे रह जाया करता दुःख ही मंजिल तक जाता है।
साथी! दुःख से घबराता है?
दुःख जीवन में करता हलचल,
वह मन की दुर्बलता केवल,
दुःख को यदि मान न तू तो दुःख सुख बन जाता है।
साथी! दुःख से घबराता है
पथ में शूल बिछे तो क्या चल
पथ में आग जली तो क्या जल
जलती ज्वाला में जलकर ही लोहा लाल निकल आता है।
साथी! दु:ख से घबराता है?
धन्यवाद दो उसको जिसने
दिए तुझे दुःख के तो सपने,
एक समय है जब सुख ही क्या! दुःख भी साथ न दे पाता है।
साथी! दुःख से घबराता है?